कांग्रेस के संकटमोचक माने जाने वाले दिग्विजय सिंह अब रूद्र अवतार में हैं. हनुमान से अचानक शिव का भेस धरा है और मंथन के बाद निकले विष को पीने के लिए तैयार हैं. प्रदेश की राजनीति का तजुर्बा इतना तो मान जा सकता है कि इस विष को अपने कंठ में ही रोक कर पार्टी में रोक कर जीते भी रहेंगे. कांग्रेस के लिए अब कोई न कोई जीत हासिल करना जरूरी है. नगरीय निकाय चुनाव में नतीजे मनमुताबिक नहीं मिले तो पार्टी की कमर टूटना या टूटी मान लेना तय है. अब इस कमर को सीधा रखने के लिए टेका देने की कोशिश में दिखाई दे रहे हैं दिग्विजय सिंह. घंटों बैठक और चर्चाओं में जो मंथन हुआ उससे जाहिर है असंतोष और गुटबाजी का कुछ न कुछ विष तो निकला ही होगा. इस विष पान के लिए भी स्वतः तैयार हैं. ये वही दिग्विजय सिंह हैं जिनके बयानों ने अब तक कांग्रेस और कमलनाथ दोनों की नाक में दम किया हुआ था. अब अपने नए बयान से शायद दिग्विजय सिंह कमलनाथ को क्या ये ढांढस बंधाने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं कि फिक्र मत करो अब मैं कुछ गड़बड़ नहीं करूंगा.